हम थे उस राह पर जिसकी मंजिल को हमारी चाहत ना थी
चल रहे थे मगर
आँखों में सपने लिए
इस चाहत में की कहीं तो होगी वो मंजिल
जो हमें ढूँढती फिर रही होगी
था तो ये एक संयोग
की जिस मंजिल को हमारी चाहत ना थी
वो था मेरा मार्गदर्शक
जो जोर जोर से हमें आवाज़ दे रहा था
की
"ऐ हमसफ़र अपनी राह बदल दो"
चल रहे थे मगर
आँखों में सपने लिए
इस चाहत में की कहीं तो होगी वो मंजिल
जो हमें ढूँढती फिर रही होगी
था तो ये एक संयोग
की जिस मंजिल को हमारी चाहत ना थी
वो था मेरा मार्गदर्शक
जो जोर जोर से हमें आवाज़ दे रहा था
की
"ऐ हमसफ़र अपनी राह बदल दो"
1 comment:
true words
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