सुन ले मेरी ये पुकार ....
है नही ये ललकार ...
कह रही है मेरे .
वक़्त की चाल में फँसा है
यह माँ का लाल .
डरता फिरता हूँ मै
इस वक़्त से
वक़्त में छुपे तूफ़ान से
काली घटाओं के आगोश
में लिपटे ..
आशुओं के समान ..
कठोर बारीश की बूंदों से,
सुन ले मेरी ये पुकार ....
है नही ये ललकार ...
कह रही है मेरे .
जीवन की हृद्यताल ...
उम्मीद थी मुझे
उस पूनम की रात से ...
फिर भी तड़प थी इस बात से ....
की कहीं काली घटा ....
छीन ना ले जाए ...
इस चन्दा को उसकी रात से ....
इस चन्दा को उसकी रात से ....