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Saturday, 26 November 2011

एहसास

एक एहसास ऐसा जो भुला ना सका
एक प्यास ऐसा जो मिटा ना सका
दूर है सागर का किनारा
दूर है तेरा सहारा
बैठा हूँ उस रेत पर जो जलाता रहा
बस पास है वो सूरज की किरणे जो
दूर उस सागर की बूंदों को सजाता रहा
बैठा हूँ इस उम्मीद में
कभी तो दूर होगी ये सूरज की किरणे
जो मुझको जलाता रहा.....
जो मुझको जलाता रहा.....