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Tuesday 10 April 2012

पैमाना

कोई ढूँढ दे वो महफील
जहाँ गूंजे मेरा तराना ....
हम तो गूंजते  हैं  उस
महफील में
जिसे कहते हैं मैखाना ...
है तो ये बस एक बहाना
हमें तो बस है जाम छलकाना
ना  जरूरत है .
ना हसरत है
फिर क्यों है ये पैमाना
निकल जाऊं उस गली में
जिसके लिए छोड़ दिया ज़माना
 
 

ज़माना ......

कोई ढूँढ दे वो महफील
जहाँ गूंजे मेरा तराना ....
कोई ढूँढ दे वो महफील
जहाँ गूंजे मेरा तराना ....
कोई ढूँढ दे वो महबूब
जिसे   पा , छोड़ दूँ ये  ज़माना   ......