बूंदों के गिरने से ...
खिल उठती थी वो प्यारी सी झील ...
जिसकी ठंडक से
मचल जाया करता था मेरा दिल
फूलों की खुशबू में
जिसे बाग़ से चुरा लाया करता था
उस बाग़ का माली था मैं
बस यूँहीं गया था भूल
और उन पलों को जो खोता मैं जा रहा था
रोशन कर पाया उन्हें , हटा कर हताशा की धूल....
खिल उठती थी वो प्यारी सी झील ...
जिसकी ठंडक से
मचल जाया करता था मेरा दिल
फूलों की खुशबू में
जिसे बाग़ से चुरा लाया करता था
उस बाग़ का माली था मैं
बस यूँहीं गया था भूल
और उन पलों को जो खोता मैं जा रहा था
रोशन कर पाया उन्हें , हटा कर हताशा की धूल....
2 comments:
bhaukal
वाह!!! बहुत खूब ...
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