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Thursday, 19 January 2012

आगोश

गर ये  जो  होता ,
तू ..तू ना मेरा होता ,
रहता मै अकेला ,
ये जो ख़ुशी तेरे होंठो पर नृत्य कर रही है...
क्या, है कोई ये नृत्यांगना ?
पर ,
है ये नही सिर्फ तेरा ,
ये तो पिरोई गयीं हैं 
तेरे और मेरे साँसों की खुशबुओं की मालाओं  से  
गर ये  जो  होता ,
तू ..तू ना मेरा होता ,
तेरा दिल इन खुशबुओं को तरस गया  होता 
माना मै रहता तन्हा...
माना मै रहता खामोश
हाँ पर नहीं रहता तेरा ये  आगोश ....




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